Lav Kush Ke Ghat Gyan Amrit Se Bharte Jate Hain - Ravindra Jain

Lav Kush Ke Ghat Gyan Amrit Se Bharte Jate Hain

Ravindra Jain

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Lyric

श्रुति धर, गुण धर, ज्ञान धर, विद्या धर दो, भ्रात

आत्मसाध करते चलें गुरुवर की हर बात

ललित कला और वेद शास्त्र का पाठ पढ़ाते हैं

लव-कुश के घट ज्ञानामृत से भरते जाते हैं

अस्त्र-शस्त्र में गुरु दोनों को निपुण बनाते हैं

लव-कुश के घट ज्ञानामृत से भरते जाते हैं

ब्रह्म मुहूर्त की बेला, कहो, "ॐ, हरि ॐ"

(हरि ॐ, हरि ॐ)

"हरि ॐ", कहें से पावन हो रोम-रोम

(हरि ॐ, हरि ॐ)

रामायण का पारायण लव-कुश को सुगुरु कराते

पुरुषोत्तम श्री रामचरित का हर अध्याय पढ़ाते

वर्णन किया राम अवतार, नृप दशरथ, घर चार कुमार

फिर विवाह का सुखद प्रसंग, सिय ब्याही करी शिव धनु भंग

राम-लखन सिय का वनवास बखाना

सीता हरण, लंक को कपि का जाना

लंका दहन कियो हनुमान

रावण वध कियो श्री भगवान

पुनि वर्णन किया वह अध्याय

सिय पर जहाँ हुआ अन्याय

गुरु से रामायण सुनकर लव-कुश दोहराते हैं

अवध में ऐसा, ऐसा एक दिन आया

निष्कलंक सीता पे प्रजा ने मिथ्या दोष लगाया

अवध में ऐसा, ऐसा एक दिन आया

सीता ने जिस नगरी पे ममता का आँचल डाला

निर्दय होकर उसने माँ को दे दिया देश निकाला

सीता कुछ समझ ना पाई, हत प्रभु रह गए रघुराई

यूँ भाग्य ने करवट बदली, वो प्रलय की आँधी आई

जनमत पर नत विवश राम भी सिय को रोक ना पाया

अवध में ऐसा, ऐसा एक दिन आया

चल दी सिया जब तोड़कर सब नेह-नाते मोह के

पाषाण हदयों में ना अँगारे जगे विद्रोह के

आकाश, धरती, देवता सब देखते ही रह गए

विधना के इस अन्याय को क्यों मोन रहकर सह गए

- It's already the end -